अग्नि पाती | Fire Tablet in Hindi | बहाउल्लाह

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Suraj Motiwala
ईश्वर के नाम से ! सर्वमहान, अति प्राचीन! वस्तुतः निष्कपट हृदय बिछोह की अग्नि से व्यथित हैं: कहाँ है तेरे मुखमण्डल के प्रकाश की चमक, हे सर्वलोकों के प्रियतम ? वे जो तेरे निकट हैं वे विध्वंसन के अंधकार में परित्यक्त हैं: तेरे पुनर्मिलन के भोर की दीप्ति कहाँ है , हे सर्वलोकों की अभिलाषा ? तेरे चुने हुये जनों के शरीर सुदूर रेत पर पड़े तड़प रहे हैं : तेरे सान्निध्य का महासागर कहाँ है, हे लोकों की मोहक ? तेरी उदारता एवं कृपा के आकाश की ओर सहिष्णु हस्त ऊपर उठाये गये हैं: तेरी अनुकम्पा की वर्षा कहाँ है, हे सर्वलोकों के सामाधानकर्ता ? नास्तिक हर ओर अत्याचार में उठ खड़े हुए हैं: तेरे आदेशात्मक लेखनी की बाध्यकारी शक्ति कहाँ है, हे लोकों के विजेता ? श्वानों का भौंकना हर दिशा में तीव्र हो गया है: तेरी शक्ति के वन के सिंह कहाँ है, हे लोकों के दण्डदाता ? निरूत्साह ने समस्त मानवता को जकड़ लिया है: तेरा उत्साह भरने वाला प्रेम कहाँ है, हे लोकों की ज्वाला ? आपदा अपने चरम पर पहुँच गई है: तेरी सहायता के चिन्ह कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के मुक्ति ? अंधकार ने बहुसंख्य जनों को घेर लिया है : तेरी कांति की प्रखरता कहाँ है, हे सर्वलोकों के दीप्ति? लोगों की गर्दनें विद्वेष से तनी हैं: तेरे प्रतिशोध की कृपाण कहाँ है, हे लोकों के विध्वंसकर्ता ? पतन अधमता के रसातल तक जा पहुँचा है: तेरी गौरव के प्रतीक कहाँ है, हे सर्वलोकों की महिमा ? दुःखों ने तेरे सर्वकृपालु नाम को प्रकट करने वाले को पीड़ित कर दिया हैं: तेरे प्रकटीकरण के उद्गमस्थल का आनन्द कहाँ है, हे सर्वलोकों के आह्लाद ? वेदना धरती के समस्त जनों पर आ पड़ी है: तेरी प्रसन्नता की पताकाएँ कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के उल्लास ? देखता है तू कि तेरे ’संकेतो का...

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